Saturday 27 January 2018

Hindu Dharm Darshan-133 -G 13



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

*जो इस जीवत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुवा समझता है, वह दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न मारता है और न मारा जाता है.
**आत्मा के लिए किसी भी काल में न जन्म है न मृत्यु. वह न तो कभी जन्मा है न जन्म लेता है, न जन्म लेगा. वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है.शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 19 +20 +++++

अर्जुन युद्ध करने से कतराते हैं . 
कहते हैं कि अपने भाइयों को मारने से अच्छा है कि मैं ही मारा जाऊँ, 
इस पर भगवान उन्हें यह पट्टी पढाते हैं . 
मामला गौर तलब है. अर्जुन प्रतियक्ष शरीर की बात करते हैं 
तो भगवान् परोक्ष आत्मा की सुनाते हैं, 
यह धर्म है या अधर्म.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, 
बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, 
लेकिन वह लोग बाहम मुख्तलिफ हुए 
सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफ़िर रहा. 
और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते 
लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं" 
(सू रह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २५३) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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