Wednesday 31 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त 4)

मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 
"ऐ ईमान वालो! जो शख़्स तुम में से अपने दीन से फिर जाए तो अल्लाह बहुत जल्द ऐसी क़ौम पैदा कर देगा कि जिस को इस से मोहब्बत होगी और उसको इस से मुहब्बत होगी. मेहरबान होंगे वह मुसलमानों पर और तेज़ होंगे काफ़िरों पर. जेहाद करने वाले होंगे अल्लाह की राह पर." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (54) 

कितना कमज़ोर है मुहम्मद का गढ़ा हुवा अल्लाह जो अपनी ही कमज़ोरी से परेशान है. 
अफ़सोस ! मुसलमान ऐसे कमज़ोर अल्लाह के जाल में फंसे हुए हैं जो ख़ुद जाल बुनते वक़्त घबरा रहा था. 

तारीख़ी पस ए मंज़र में अल्लाह कहता है - - - .
"जिन्हों ने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना रख्खा है, उनको और दूसरे कुफ्फ़ार को दोस्त मत बनाओ और अल्लाह से डरो अगर तुम ईमान वाले हो और जब तुम नमाज़ के लिए एलान करते हो तो यह तुम्हारे साथ हँसी खेल करते हैं, इस सबब से कि वह लोग ऐसे हैं कि बिलकुलअक्ल नहीं रखते." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (59) 

जब किसी क़ौम का ग़लबा होता है तो उसका छू मंतर भी क़ाबिले एहतराम इबादत बन जाती है. नमाज़ कल भी एक संजीदा शख़्स  के लिए क़ाबिल ए एतराज़ हरकत थी और आज भी हो सकती है. अवामी सतह पर उट्ठक-बैठक बनाम इबादत कल भी हंसी खेल रहा होगा आज भी यक़ीनन है. ऐसी बेतुकी हरकत को कम से कम इबादत तो नहीं कहा जा सकता. कम अक़ली के ताने देने वाला अल्लाह ख़ुद अपने ऊपर शर्म करे कि दुन्या के कोने कोने से मुसलमान अक्ल के अंधे, काबा जाते है, शैतान को कंकड़ीयाँ मारने .

"आप कहिए कि क्या मैं तुम को ऐसा तरीक़ा बतलाऊँ जो इस से भी अल्लाह के यहाँ बदला लेने में ज़्यादा बुरा हो. वह इन लोगों का तरीक़ा है जिन को अल्लाह ने दूर कर दिया हो और इन पर ग़ज़ब फ़रमाया हो और इन को बन्दर और सुवर बना दिया हो और इन्हों ने शैतान की परिस्तिश की हो."
सूरह अलमायदा 5 -छटवाँ पारा-आयत (60) 

मुहम्मदी अल्लाह का दिमाग कैसी कैसी ग़लाज़तों से भरा हुवा था? यही इबारत मुसलमान सुबहो-शाम अपनी नमाज़ों में पढ़ते हैं. अगर अपनी जबान मैं पढें तो एक हफ़्ते में  शर्म से डूब मरें.

मुहम्मद से अल्लाह कहते है - - - 
"और जो आप के पास आप के परवर दिगार की तरफ़ से भेजा जाता है वह इनमें से बहुतों की सरकशी और कुफ़्र का सबब बन जाता है और हम ने इन में बाहम क़यामत तक अदावत और बुग्ज़ डाल दिया है. जब कभी लड़ाई की आग भड़काना चाहते हैं, अल्लाह तअला, उसको फ़र्द कर देते हैं और मुल्क में फ़साद करते फिरते हैं और अल्लाह तअला फ़साद करने वालों को पसंद नहीं करते." 
सूरह अलमायदा 5 - छटवाँ पारा-आयत (64)

यह सोच मुहम्मद की फ़ितरत का आइना है जिसको उनके एजेंट सदियों से पुजवाते चले आ रहे हैं. मुहम्मद खुद परस्ती के सिवाए तमाम इन्सान और इंसानियत के दुश्मन थे. इनकी उलटी मुश्तःरी करके आलिमों ने सारे दुन्या की बीस फ़ीसद आबादी के साथ दग़ाबाज़ी की है और करते जा रहे हैं. मुसलामानों ! ग़ौर करो कि  यह घटिया तरीन बातें जिनको किसी से कहने में ख़ुद तुमको शर्म आए , तुम्हारे क़ुरआनी अल्लाह की हैं. 
वह कभी अपने बन्दों को बन्दर बना देता है तो कभी सुवर, 
कभी उनको आपस में लडवा कर ज़मीन पर फ़साद कराता है.
क्यूँ? आख़िरक्यूं करता रहता है वह ऐसा? 
क्या कभी हुवा भी है ऐसा ? 
क्या मुहम्मद का झूट, उनकी साज़िश इन बातें में तुम को नज़र नहीं आती?
अरे मेरे भाइयो! 
ख़ुदा के लिए आँखें खोलो वरना मुहम्मद का अल्लाह तुम को बे मौत मारेगा. 

"और अगर यह लोग तौरेत की और इंजील की और जो किताब इन के परवर दिगर की तरफ़  से इनके पास पहुँच गई है उसकी पूरी पाबन्दी करते तो ये लोग अपने ऊपर से और अपने नीचे से पूरी फ़राग़त से खाते."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (66)

लाहौल वलाकूवत ! 
क्या मतलब हुवा मुहम्मदी अल्लाह का? 
आप खुद अख्ज़ करें कि उसका ऐसा फूहड़ मजाक़ अहले किताब के फ़रमा बरदारों के साथ? अच्छा हुवा कि न फ़रमान हुए वरना नीचे से खाना पड़ता, शायद इसी लिए नाफ़रमान हो गए हों. मुहम्मद की गन्दी ज़ेहनियत ही कही जा सकती है. 
अनुवाद करने वाले मक्कार आलिम इसमें मानी व् मतलब भरते रहें.

"बे शक वह लोग काफ़िर हो चुके हैं जिन्हों ने कहा अल्लाह तअला में मसीह इब्ने मरियम है."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (72)

इस्लामी इस्तेलाह में किसी को काफ़िर कहना, उसे गाली देने की तरह होता है. अहले किताब यानी यहूदी और ईसाई काफ़िर नहीं होते हैं मगर मुहम्मद का मूड कब कैसा हो? ईसाइयों को उनके आस्था पर काफ़िर कहते है, जब कि ईसाई ख़ुद कुफ़्र (ख़ास कर मूर्ती पूजा) को सख्त ना पसंद करते हैं. इस तरह ईसाइयों का मुसलमानों से बैर बंधता गया.

"जो शख़्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत (आज्ञा कारी) करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिस के नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे.ये बड़ी कामयाबी है"
सूरह अलमायदा 5- सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (75)

कुरआन में यह आयत मोहम्मद की कमर्शियल ब्रेक  है और क़ुरआन में बार बार आती है.

"ऐ अहले किताब! तुम अपने दीन में न हक़ गुलू (मिथ्य) मत करो और उन लोगों के ख़याल पर मत चलो जो पहले ही ग़लती में आ चुके हैं और बहुतों को ग़लती में डाल चुके हैं."
सूरह अलमायदा 5- सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (77) 

ऐ मोहम्मद! 
दूसरों को राह मत दिखलाओ, पहले खुद राह-ऐ-रास्त पर आओ. 
अपनी उम्मत की ज़िन्दगी पलीद किए बैठे हो और अह्ल ए किताब यहूदियों और ईसाइयों को चले हो राह बतलाने. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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