Tuesday 1 May 2018

Hindu Dharm 174



चरित्र निर्माण
यहूदी काल में भी अन्ना समर्थकों का ताँता बंधा रहता.
लोग किसी भी मौक़े पर तमाश बीन बन्ने के लिए तैयार रहते.
एक व्यभिचारणी को जुर्म की सज़ा में संग सार करने की तय्यारी चल रही थी, लोग अपने अपने हाथों में पत्थर लिए हुए खड़े थे.
वहीँ ईसा ख़ाली हाथ आकर खड़े हो गए. व्यभिचारणी लाई गई,
पथराव शुरू ही होने वाला था कि ईसा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा - - -
"तुम लोगों में पहला पत्थर वही मारेगा जिसने कभी व्यभिचार न किया हो"
सब के हाथ से पत्थर नीचे ज़मीन पर गिर गए.

अन्ना को, अगर उनमें दम हो तो चाहिए कि वह ईसा बनें लोगो से कहें - - -
"कि मेरे साथ वही लोग आएं जिन्हों ने कभी भ्रस्ट आचरण न किया हो. 
न रिश्वत लिया हो और न रिश्वत दिया हो."
बड़ी मुश्किल आ जाएगी कि वह अकेले ही राम लीला मैदान में पुतले की तरह खड़े होंगे.
चलिए इस शपथ को और आसान करके लेते हैं कि वह अपने अनुयाइयों से यह शपथ लें कि आगे भविष्य में वह रिश्वत लेंगे और न रिश्वत देंगे.
रिश्वत के मुआमले में लेने वालों से देने वाले दस गुना होते हैं.
पहले देने वाले ईमानदार बने. रिश्वत के आविष्कारक देने वाले ही थे.
अन्ना सिर्फ़ सातवीं क्लास पास हैं, उनके अन्दर इंसानी मनोविज्ञान की कोई समझ है न अध्यन, परिपक्वता तो बिलकुल नहीं है, वह अनजाने में भ्रष्टा चार का एक रावन और बनाना चाहते हैं जिसका रूप होगा लोकायुक्त.
अन्ना को चाहिए कि वह अपनी बची हुई थोड़ी सी ज़िन्दगी को हिन्दुस्तानियों के चरित्र निर्माण में लगाएं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment