Wednesday 3 April 2019

सूरह आला - 87 = سورتہ الاعلی (सब्बेहिस्मा रब्बिकल अअल ललज़ी)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह आला - 87 (सब्बेहिस्मा = سورتہ الاعلی)

(रब्बिकल अअल ललज़ी)  



ऊपर उन (78  -1 1 4) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फ़ाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फ़ातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत, जेहालत, कुदूरत, ग़लाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए ग़ैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..

इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फ़ाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सज़ाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफ़रत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर  ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.



"आप अपने परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए,

जिसने बनाया, फिर ठीक बनाया, जिसने तजवीज़ किया, फिर राह बताई,
और जिसने चारा निकाला और फिर उसको स्याह कोड़ा कर दिया,
हम वादा करते हैं कि हम क़ुरआन आपको पढ़ा दिया करेंगे,
फिर आप नहीं भूलेंगे मगर जिस कद्र अल्लाह को मंज़ूर हो,
वह हर ज़ाहिर और मुख़फ़ी को जनता है और हम इस शरीअत के लिए आपको सहूलत देंगे.
तो आप नसीहत किया कीजिए अगर नसीहत करना मुफ़ीद होता है,
वही शख़्स नसीहत पाता है जो डरता है और जो शख़्स  बद नसीब होता है,
वह इससे गुरेज़ करता है जो बड़ी आग में दाख़िल होगा, फिर न इसमें मर ही जाएगा, और न इस में जिएगा,
बा मुराद हुवा जो शख़्स पाक हो गया,
और अपने रब का नाम लेता रह और नमाज़ पढता रहा.
बल्कि तुम अपनी दुनयावी ज़िन्दगी को मुक़द्दम समझते हो,
हालाँकि आख़िरत बदरजहा बेहतर और पाएदार है,
ये मज़मून अगले सहीफों में भी है,
यानी इब्राहीम और मूसा के सहीफों में.
सूरह अअला आयत (1 -1 9 ) 



नमाज़ियो !

ज़रा ग़ौर करो कि नमाज़ में तुम अल्लाह के हुक्म नामे को दोहरा रहे हो. 
अगर कोई हाकिम हैं और अपने अमले को कोई हुक्म जारी करता है, 
तो अमला रद्दे अमल में हुक्म की तामील करता है या हुक्म  नामे को पढता है? हुक्म नामे को पढना गोया हाकिम होने की दावा दारी करने जैसा है. 
अल्लाह के कलाम को दोहराना क्या अल्लाह की नकल करने जैसा नहीं है? मुसलमानी दिमाग़ का हर कल पुर्जा ढीला है, 
यह अंजाम है जाहिल रसूल की पैरवी का.
यहूदी अपने इलोही का नाम बाइसे एहतराम लिखते नहीं और मुसलमान अल्लाह बन कर उसके हुक्म की नकल करके उसकी खिल्ली उडाता है..

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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