Monday 15 April 2019

सूरह लैल - 92 = سورتہ اللیل

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह लैल - 92 =  سورتہ اللیل
(वललैलेइज़ा यगषा) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
जाहिले मुतलक़ मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है देखो - - -

"क़सम है रात की जब वह छुपाले,
दिन की जब वह रौशन हो जाए,
और उसकी जिस ने नर और मादा पैदा किया,
कि बेशक तुम्हारी कोशिशें मुख़्तलिफ़ हैं,.
सो जिसने दिया और डरा,
और अच्छी बात को सच्चा समझा,
तो हम उसको राहत की चीज़ के लिए सामान देंगे,
और जिसने बोख्ल किया और बजाए अल्लाह के डरने के, 
इससे बे परवाई अख़्तियार की और अच्छी बात को झुटलाया,
तो हम इसे तकलीफ़ की चीज़ के लिए सामान देंगे."
सूरह लैल  92  आयत (1 -1 0 )

"और इसका माल इसके कुछ काम न आएगा,
जब वह बर्बाद होने लगेगा,
वाकई हमारे जिम्मे राह को बतला देना है,
औए हमारे ही कब्जे में है,
आख़िरत और दुन्या, तो तुमको एक भड़कती हुई आग से डरा चुका हूँ,
इसमें वही बद बख़्त दाख़िल होगा जिसने झुटलाया और रूगरदानी की,
और इससे ऐसा शख़्स दूर रखा जाएगा जो बड़ा परहेज़गार है,
जो अपना माल इस लिए देता है कि पाक हो जाए,
और बजुज़ अपने परवर दिगार की रज़ा जोई के, इसके ज़िम्मे किसी का एहसान न था कि इसका बदला उतारना हो .
और वह शख़्स  अनक़रीब ख़ुश हो जाएगा."
सूरह लैल  92  आयत (1 1 -2 1 )

नमाजियों!
हिम्मत करके सच्चाई का सामना करो. 
तुमको तुम्हारे अल्लाह का बना रसूल वरग़ला रहा है. 
अल्लाह का मुखौटा पहने हुए, वह तुम्हें धमका रहा है कि उसको माल दो. 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों से, उनकी हैसियत के मुताबिक़ 
टेक्स वसूल किया करता था. इस बात की गवाही ये क़ुरआनी आयतें हैं. 
ये सूरह मक्का में गढ़ी गई हैं जब कि वह इक़्तदार पर नहीं था. 
मदीने में मक़ाम मिलते ही भूख खुल गई थी.
मुहम्मद ने कोई समाजी, फ़लाही, ख़ैराती या तालीमी इदारा क़ायम नहीं कर रखा था कि वसूली हुई रक़म उसमे जा सके. 
मुहम्मद के चन्द बुरे दिनों को ही लेकर आलिमों ने इनकी 
ज़िन्दगी का नक़्शा खींचा है और उसी का ढिंढोरा पीटा है. 
मुहम्मद के तमाम ऐब और ख़ामियों की इन ज़मीर फ़रोशों ने पर्दा पोशी की है. 
बनी नुज़ैर की लूटी हुई तमाम दौलत को मुहम्मद ने हड़प के अपने नौ बीवियों और उनके घरों के लिए वक़्फ़ कर लिया था. और उनके बाग़ों और खेतियों की मालगुज़ारी उनके हक़ में कर दिया था. जंग में शरीक होने वाले अंसारी हाथ मल कर रह गए थे. हर जंगी लूट में माल ग़नीमत में 2 0 % मुहम्मद का हुआ करता था.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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