Wednesday 24 April 2019

सूरह अलक़ - 96 = سورتہ العلق

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अलक़ - 96 = سورتہ العلق
(इकरा बिस्मरब्बे कल लज़ी ख़लक़ा)   

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
अल्लाह मुहम्मद से कहता है - - -

"आप क़ुरआन को अपने रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए,
जिस ने पैदा किया ,
जिसने इंसानों को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया,
आप क़ुरआन पढ़ा कीजे, और आपका रब बड़ा करीम है,
जिसने क़लम से तअलीम दी,
उन चीजों की तअलीम दी जिनको वह न जानता था,
सचमुच! बेशक!! इंसान हद निकल जाता है,
अपने आपको मुस्तग़ना  देखाता है,
ऐ मुख़ातब! तेरे रब की तरफ़ ही लौटना होगा सबको.
सूरह अलक़ 96  आयत (1 -9 )

ऐ मुखातब ! उस शख़्स का हाल तो बतला,
जो एक बन्दे को मना करता है, जब वह नमाज़ पढ़ता है,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि वह बंदा हिदायत पर है,
या तक़वा का तअलीम देता हो,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि अगर वह शख़्स झुट्लाता हो और रू गरदनी करता हो,
क्या उस शख़्स  को ये ख़बर नहीं कि अल्लाह देख रहा है,
हरगिज़ नहीं, अगर ये शख़्स  बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे. सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला लें. हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
सूरह अलक़ 96  आयत (1 0 -1 9 )

नमाज़ियो!
जब हमल क़ब्ल अज वक़्त गिर जाता है तो वह ख़ून का लोथड़ा जैसा दिखाता है, मुहम्मद का मुशाहिदा यहीं तक है, जो अपने आँख से देखा उसे अल्लाह की हिकमत कहा. वह क़ुरआन  में बार बार दोहराते हैं कि 
"जिसने इंसानों को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया''
इंसान कैसे पैदा होता है, इसे मेडिकल साइंस से जानो.
 इंसान को क़लम से तअलीम अल्लाह ने नहीं दी, 
बल्कि इंसान ने इंसान को क़लम से तअलीम दी. 
क़लम इंसान की ईजाद है, अल्लाह की नहीं. 
क़ुदरत ने इंसान को अक़्ल दिया 
कि उसने सेठे को क़लम की शक़्ल दी उसके बाद लोहे को 
और अब कम्प्युटर को शक़्ल दे रहा है. 
मुहम्मद किसी बन्दे को मुस्तग़ना (आज़ाद) देखना पसंद नहीं करते.
सबको अपना असीर देखना चाहते हैं, 
बज़रीए अपने कायम किए अल्लाह के.
ये आयतें पढ़ कर क्या तुम्हारा ख़ून खौल नहीं जाना चाहिए 
कि मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह धमकता है 
"अगर ये शख़्स बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे. सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला ले. हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
क्या मालिके-कायनात की ये औक़ात रह गई है?
मुसलमानों अपने जीते जी दूसरा जनम लो. 
मुस्लिम से मोमिन हो जाओ. 
मोमिन का मज़हब वह होगा जो उरियाँ सच्चाई को क़ुबूल करे. 
क़ुदरत का आईनादार होगा और ईमानदार. 
इस्लाम तुम्हारे साथ बे ईमानी है. 
इंसान का बुयादी हक़ है इंसानियत के दायरे में मुस्तग़ना (आज़ाद) होकर जीना, .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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