Monday 8 April 2019

सूरह फ़ज्र - 89 = سورتہ الفجر सूरह फ़ज्र - 89 = سورتہ الفجر

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह फ़ज्र - 89 = سورتہ الفجر 
(वल फ़ज्र वला यालिन अशरिन)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

संत हसन बसरी का किस्सा मशहूर है कि वह जुनूनी कैफ़ियत में, 
अपने एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में पानी लेकर भागे चले जा रहे थे. 
लोगों ने उन्हें रोका और माजरा दर्याफ़्त किया, 
वह बोले जा रहा हूँ उस दोज़ख में पानी डालकर बुझा देने के लिए 
और उस जन्नत में आग लगा देने के लिए जिनके डर और लालच में  
लोग नमाज़ें पढ़ते हैं. 
ताबेईन (मुहम्माद कालीन की अगली नस्ल) का दौर था 
जिसमे उस हस्ती ने ये एलान किया था. 
क़ुरआन की गुमराह कुन दौर था, 
हसन बसरी के नाम का वारंट निकल गया था, 
सरकारी अमला उनकी गिरफ़्तारी में सर गर्म था, 
उनके ख़ैर ख़्वाह उनको छिपाते फिरते. 
इस्लामी पैग़ाम के बाद आम और ख़ास मुसलमान दोज़ख और जन्नत के ताल्लुक से ही नमाज़ पढ़ता था, 
जिसको हसन जैसे हक़ शिनाश अज़ सरे नव ख़ारिज करते थे. 
ऐसे लोगों की ये जिसारत देख कर उनकी गर्दनें मार देने के एहकाम जारी हुए, 
मंसूर, तबरेज़, सरमद और कबीर इसकी मिसाल हैं.

अल्लाह की क़स्मों की किस्में मुलाहिज़ा हो, 
क़समें खा खा कर झूट बोलने वाला अल्लाह कहता है - - -

"क़सम फ़ज्र की, और दस रातों की, 
और जुफ़्त की और ताक़ की, 
और रात की जब वह चलने लगे, 
क्यूंकि इसमें अक़्ल मंदों के वास्ते काफ़ी क़सम भी है, 
क्या आपको मालूम नहीं कि आपके परवर दिगार ने क़ौम आद 
यानी क़ौम इरम के साथ क्या मुआमला किया? 
जिन के क़द ओ क़ामत सुतून जैसे थे, 
जिन के बराबर शहरों ने कोई शख़्स नहीं पैदा किया.
"और क़ौम सुमूद के जो वादिए क़ुरआ में , 
पत्थरों को तराशा करते थे
और मेखों वाले फ़िरओन के साथ
जिन्हों ने शहरों में सर उठा रख्खा था. 
और इनमें बड़ा फ़साद मचा रखा था, 
सो आप के रब ने इन पर अज़ाब का कोड़ा बरसाया, 
बेशक आप का रब घात में है, 
सो आदमी को जब वह परवर दिगार आज़माता है, 
यानी इसको इकराम ओ इनाम देता है तो वह कहता है,
मेरे रब ने मेरी कद्र बढ़ा दी. 
औए जब आज़माता है और इसकी रोज़ी इस पर तंग कर देता है
तो वह कहता है मेरे रब ने मेरी क़द्र घटा दी.''

सूरह फज्र 89 - आयत (1 -16 )

 "हरगिज़ नहीं 
यानी तुम लोग यतीम की क़द्र नहीं करते, 
और दूसरों को भी मिस्कीन को खाना देने की तरग़ीब नहीं देते, 
और मीरास का माल समेट कर खा जाते हो, 
और माल से तुम लोग बहुत मुहब्बत रखते हो,
हरगिज़ ऐसा नहीं, 
जिस रोज़ ज़मीन को तोड़ फोड़ कर रेजः रेजः कर दिया जाएगा, 
आपका परवर दिगार और जौक़ दर जौक़ फ़रिश्ते आएँगे, 
और इस रोज़ जहन्नम को लाया जाएगा, 
उस रोज़ इंसान को समझ आए,
अब समझ आने का मौक़ा कहाँ रहा, 
कहेगा काश मैं इस ज़िन्गागी लिए अपने कोई अमल आगे भेज लेता ता.
"पस इस रोज़ तो अल्लाह के अज़ाब के बराबर कोई अज़ाब देने वाला न निकलेगा,
न इसके झगड़ने वाले के बराबर झगड़ने वाला कोई निकलेगा, 
ऐ इत्मीनान वाली रूह , 
तू अपने परवर दिगार की तरफ़ चल,
इस तरह से कि तू इससे ख़ुश और वह तुझ से ख़ुश,
फिर तू मेरे बन्दों में शामिल हो जा, 
और मेरी जन्नत में दाख़िल हो." 
सूरह फज्र -89  आयत (17 -42)

नमाज़ियो!
ग़ौर से पढ़ा? कब तक अपने मुसल्ले को लपेट कर अपने बच्चों के कन्धों पर लादते रहोगे? कब तक? कितनी सदियों तक? दीगर क़ौमे जब अपने कन्धों पर पंख लगा कर उड़ने लगेंगी, तब तो बहुत देर हो चुकेगी. मेरे भाइयो ! देखो कि क्या कह रहा है तुम्हारा दीन? इसको ख़ामोश करो, इसे अब्दी नींद सुला दो. अब और ज़्यादः इस जिहालत को इस धरती पर रहने देने की इजाज़त नहीं होना चाहिए.

ग़ौर करो तुम्हारा अल्लाह ख़ुद अपने मुंह से कहता है,"बेशक आप का रब घात में है"
क्या कोई अल्लाह अपने बन्दों के साथ चाल घाट करने वाला होगा?
कहता है, "न इसके झगड़ने वाले के बराबर झगड़ने वाला कोई निकलेगा, "
तुम्हारा अल्लाह लड़ाका है? ऐसे अल्लाह से पिंड छुडाओ.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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