Wednesday 10 April 2019

सूरह बलद - 90 = سورتہ البلد

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह बलद - 90 = سورتہ البلد
(लअ उक्सिमो बेहाज़िल बलदे)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

भारत की मरकजी सरकार और रियासती हुकूमतें भले ही मुस्लिम दुश्मन न हों, मगर यह मुस्लिम दोस्त भी नहीं. यह इलाक़ाई और क़बीलाई तबकों की तरह मुसलमानों को भी छूट दिए हुए है कि मुसलमान सैकड़ों साल पुराने वहमों को ढ़ोते रहें. इन्हें शरई क़ानून के पालन की इजाज़त है, जो इंसानियत सोज़ है. 
पेश इमामों को और मुअज़ज़िनों को सरकार तनख़्वाह  मुक़र्रर किए हुए है 
कि वह मुसलामानों को पंज वक्ता ख़ुराफ़ात पढ़ाते रहे. 
मदरसों को तअव्वुन करती हैं कि वह हर साल निकम्मे और बेरोज़गार पैदा करते रहें. मुसलमानों को नहीं मालूम कि उनका सच्चा हमदर्द कौन है. 
वह क़ुरआन को ही अपना राहनुमा समझते हैं जोकि दर असल उनके लिए ज़हर है. इसका क़ौमी और सियासी रहनुमा कोई नहीं है. 
इसे ख़ुद आँखें खोलना होगा, तर्क इस्लाम करके 
मर्द ए सालह यानी मोमिन बनना होगा.     

"मैं क़सम खाता हूँ इस शहर की,
और आपको इस शहर में लड़ाई हलाल होने वाली है,
और क़सम है बाप की और औलाद की,
कि हमने इंसान को बड़ी मशक़्क़त में पैदा किया है,
क्या वह ख़याल करता है कि इस पर किसी का बस न चलेगा,
कहता है हमने इतना वाफ़र मॉल ख़र्च कर डाला, क्या वह ये ख़याल करता है कि उसको किसी ने देखा नहीं,
क्या हमने उसको दो आँखें ,
और ज़बान और दो होंट नहीं दिए,
और हमने उसको दोनों रास्ते बतलाए,
सो वह शख़्स  घाटी से होकर निकला,
और आपको मालूम है कि घाटी क्या है,
और वह है किसी शख़्स  की गर्दन को गुलामी से छुड़ा देना है,
या खाना खिलाना फ़ाक़ा के दिनों में किसी यतीम रिश्तेदार को,.
या किसी ख़ाक नशीन रिश्ते दार को.
सूरह बलद आयत (1-1 6 )

"फिर इन लोगों में से न हुवा जो ईमान लाए और एक दूसरे को फ़ह्माइश की, पाबन्दी की और एक दूसरे को तरह्हुम की फ़ह्माइश की, यही लोग दाहने वाले हैं,
और जो लोग हमारी आयातों के मुनकिर हैं वह बाएँ वाले हैं,
इन पर आग मुहीत होगी जिनको बन्द कर दिया जाएगा.
सूरह बलद आयत (1 7-2 0 )

नमाज़ियो !
देखिए कि अल्लाह साफ़ साफ़ अपने बाप और अपने औलाद की क़सम खा रहा है, जैसे कि मुहम्मद अपने माँ बाप को दूसरों पर कुर्बान किया करते थे, वैसे है तो ये उनकी ही आदतन क़समें 
जिनको कि बे ख़याली में अल्लाह की तरफ़ से खा गए. 
हाँ, तुमको समझने की ज़रुरत है, इस बात को कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम नहीं बल्कि मुहम्मद की बकवास है.
अल्लाह कहता है कि उसने इंसान को बड़ी मशक़्क़त से पैदा किया. 
है ना ये सरासर झूट कि इसके पहले मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को कोई काम मुश्किल नहीं बस उसको कहना पड़ता है "कुन" यानि होजा, और वह हो जाता है. 
है न दोहरी बात यानी क़ुरआनी तज़ाद अर्थात विरोधाभास. 
किसी ख़र्राच के ख़र्च पर मुहम्मद का कलेजा फट रहा है, 
कि शायद उसने अल्लाह का कमीशन नहीं निकाला. 
घाटी के घाटे और मुनाफ़े में अल्लाह क्या कह रहा है, सर धुनते रहो. 
मुहम्मद के गिर्द कोई भी मामूली वाक़ेया क़ुरआन की आयत बना हुवा है, 
जिसको तुम सुब्ह ओ शाम घोटा करते हो.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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