Friday 12 April 2019

सूरह शम्स - 91 = سورتہ الشمس

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह शम्स - 91 = سورتہ الشمس
(वश्शमसे वज़ूहाहा)  

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

इस धरती पर मुख़तलिफ़ वक़्तों में समाज में कुछ न कुछ वाक़ेए 
और हादसे हुवा करते है जिसे नस्लें दो तीन पुश्तों तक याद रखती हैं. 
इनको अगर मुरत्तब किया जाए तो लाखों टुकड़े ज़मीन के ऐसे हैं 
जो करोरों वाक़ेए से ज़मीन भरे हुए है. 
इसको याद रखना और बरसों तक दोहराना बेवक़ूफ़ी की अलामत है. 
मगर मुसलमान इन बातों को याद करने की इबादत करते हैं. 
बहुत से ऐसे मामूली वाक़ेए क़ुरआन में है जिनको नमाज़ों में पढ़ा जाता है. 
पिछली सूरह में था कि आग तापते हुए मुसलामानों और मफ़रूज़ा काफ़िरों में कुछ कहा-सुनी हो गई, बात मुहम्मद के कान तक पहुँची, बस वह मामूली सा वाक़ेआ क़ुरआनी आयत बन गया और मुसलमान वजू करके, नियत बाँध के, उसको रटा करते है. ऐसा ही एन वाक़ेआ अबू लहब का है कि जब मुहम्मद ने अपने क़बीले को बुला कर अपनी पैग़म्बरी का एलान किया तो मुहम्मद के चचा अबी लहब, 
पहले शख़्स थे जिन्होंने कहा, 

"तेरे हाथ माटी मिले, क्या इसी लिए तूने हमें बुलाया था?" 
बस ये बात क़ुरआन की एक सूरह बन गई जिसको मुसलमान सदियों से गा रहे हैं, "तब्बत यदा अबी लह्बिवं - - -"

"क़सम है सूरज की और उसके रौशनी की,
और चाँद की, जब वह सूरज से पीछे आए,
और दिन की, जब वह इसको ख़ूब रौशन कर दे,
और रात की जब वह इसको छुपा ले,
और आसमान की और उसकी. जिसने इसको बनाया.
और ज़मीन कीऔर उसकी. जिस ने इसको बिछाया.
और जान की और उसकी, जिसने इसको दुरुस्त बनाया,
फिर इसकी बद किरदारी की और परहेज़ गारी की, जिसने इसको अल्क़ा किया,
यक़ीनन वह इसकी मुराद को पहुँचा जिस ने इसे पाक कर लिया ,
और नामुराद वह हुवा जिसने इसको दबा दिया."
सूरह शम्स 91 आयत (1 -1 0 )

"क़ौम सुमूद ने अपनी शरारत के सबब तक़ज़ीब की,
जब कि इस क़ौम में जो सबसे ज़्यादः बद बख़्त था,
वह उठ खड़ा हुआ तो उन  लोगों से अल्लाह के पैग़म्बर ने फ़रमाया कि अल्लाह की ऊँटनी से और इसके पानी पीने से ख़बरदार रहना,
सो उन्हों ने पैग़म्बर को झुटला दिया, फिर इस ऊँटनी को मार डाला.
तो इनके परवर दिगार ने इनको इनके गुनाह के सबब इन पर हलाक़त नाज़िल फ़रमाई."
सूरह शम्स 91 आयत (1 1 -1 5 )
नमाज़ियो !
अल्लाह चाँद की क़सम खा रहा है, जबकि वह सूरज के पीछे हो. 
इसी तरह वह दिन की क़सम खा रहा है जब कि वह सूरज को ख़ूब रौशन करदे?
गोया तुम्हारा अल्लाह ये भी नहीं जनता कि सूरज निकलने पर दिन रौशन हो जाता है. वह तो जनता है कि दिन जब निकलता है तो सूरज को रौशन करता है.
इसी तरह रात को अल्लाह एक पर्दा समझता है जिसके आड़ में सूरज जाकर छिप जाता है.
ठीक है हज़ारों साल पहले क़बीलों में इतनी समझ नहीं आई थी, 
मगर सवाल ये है कि क्या अल्लाह भी इंसानों की तरह ही इर्तेकाई मराहिल में था?
मगर नहीं! अल्लाह पहले भी यही था और आगे भी यही रहेगा. 
ईश या ख़ुदा अगर है, कभी जाहिल या बेवक़ूफ़ तो हो ही नहीं सकता.
इस लिए मानो कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम तो हो ही नहीं सकता. 
ये उम्मी मुहम्मद की ज़ेह्नी गाथा है.
क़ुरआन में बार बार एक आवारा ऊँटनी का ज़िक्र है. 
कहते हैं कि अल्लाह ने बन्दों का चैलेंज क़ुबूल करते हुए पत्थर के एह टुकड़े से एक ऊँटनी पैदा कर दिया. बादशाह ने इसे अल्लाह की ऊँटनी क़रार देकर आज़ाद कर दिया था जिसको लोगों ने मार डाला और अल्लाह के क़हर के शिकार हुए.
ये किंवदंती उस वक़्त की है जब इंसान भी ऊंटों के साथ जंगल में रहता था, इस तरह की कहानी के साथ साथ.
मुहम्मद उस ऊँटनी को पूरे क़ुरआन में जा बजा चराते फिरते हैं.
 *** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment