Monday 22 April 2019

सूरह तीन - 95 = سورتہ اللیل



सूरह तीन - 95 = سورتہ اللیل 
(वत्तीने वज्जैतूने वतूरे सीनीना) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
अल्लाह क्या है?
अल्लाह एक वह्म, एक गुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक अंदेशा नुमा खौफ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या ज़ेह्नी गुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अक़ली कमज़ोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है. 
गुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता ? 
इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख़्स मौजूदा 
इंसानी क़द्रों से बग़ावत करता है तो वह 
बद आमाली की किसी हद को क़रीब सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.

वैसे अल्लाह के मानने वाले भी गुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की 
अलम बरदारी करने वाले सौ फ़ीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तअलीम देने की बजाय उन्हें  
अख़लाक़यात पढ़ाई जाए, 
वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तकबिल क़रीब में उनके लिए फायदेमंद हों. मुस्तकबिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
आजका सच कल झूट साबित हो सकता हैं, 
आजकी क़द्रें कल की ना क़दरी बन सकती है.

देखिए कि अल्लाह किन किन चीज़ों की क़समें खाता है और क्यूँ क़समें खाता है. अल्लाह को कंकड़ पत्थर और कुत्ता बिल्ली की क़सम खाना ही बाक़ी बचता है - - -

"क़सम है इन्जीर की,
और ज़ैतून की,
और तूर ए सीनैन  की,
और उस अमन वाले शहर की,
कि हमने इंसानों को बहुत ख़ूब सूरत साँचे में ढाला है.
फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं.
लेकिन जो लोग ईमान ले आए और अच्छे काम किए तो 
उनके लिए इस कद्र सवाब है जो कभी मुन्क़ता न होगा.
फिर कौन सी चीज़ तुझे क़यामत के लिए मुनकिर बना रही है?
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?"
सूरह तीन आयत (1 -8 )

नमाज़ियो!
मुहम्मदी अल्लाह और मुहम्मदी शैतान में बहुत सी यकसानियत है. 
दोनों हर जगह मौजूद रहते है, दोनों इंसानों को गुमराह करते हैं.
मुसलामानों का ये मुहाविरा बन कर रह गया है कि 
"जिसको अल्लाह गुमराह करे उसको कोई राह पर नहीं ला सकता"
आपने देखा होगा कि क़ुरआन में सैकड़ों बार ये बात है कि वह अपने बन्दों को गूंगा, बहरा और अँधा बना देता है.
इस सूरह में भी यही काम अल्लाह करता है,
कि "हमने इंसानों को बहुत ख़ूब सूरत साँचे में ढ़ाला है."
"फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं."
गोया इंसानों पर अल्लाह के बाप का राज है.
अगर इंसान को अल्लाह ने इतना कमज़ोर और अपना मातेहत पैदा किया है तो उस अल्लाह की ऐसी की तैसी.
इससे कनारा कशी अख़्तियार कर लो. 
बस अपने दिमाग़ की खिड़की खोलने की ज़रुरत है.
कहीं जन्नत के लालची तो नहीं हो?
या फिर दोज़ख की आग से हवा खिसकती है?
इन दोनों बातों से परे, 
मर्द मोमिन बनो, 
इस्लाम को तर्क करके.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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