Sunday 28 April 2019

सूरह बैय्य्ना 98 = سورتہ البینہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह बैय्य्ना 98 = سورتہ البینہ
(लम यकुनेल लज़ीना कफ़रू) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"लोग अहले किताब और मुशरिकों में से हैं, काफ़िर थे, वह बाज़ आने वाले न थे, 
जब तक कि इन लोगों के पास वाज़ेह दलील न आई,
एक अल्लाह का रसूल जो पाक सहीफ़े सुनावे,
जिनमें दुरुस्त मज़ामीन लिखे हों,
और जो लोग अहले किताब थे वह इस वाज़ह दलील के आने के ही मुख़तलिफ़ हो गए,
हालाँकि इन लोगों को यही हुक्म हुवा कि अल्लाह की इस तरह इबादत करें कि इबादत इसी के लिए ख़ास रहें. यकसू होकर और नमाज़ की पाबन्दी रखें और ज़कात दिया करें. और यही तरीका है इस दुरुस्त मज़ामीन का. बेशक जो लोग अहले किताब और मुशरिकीन से काफ़िर हुए, वह आतिश ए दोज़ख में जाएँगे. जहाँ हमेशा हमेशा रहेगे. ये लोग बद तरीन खलायक़ हैं.
बेशक जो लोग ईमान ले और अच्छे काम किए, वह बेहतरीन खलायक़ हैं.,
इनका सिलह इनके परवर दिगार के नज़दीक़ हमेशा रहने की बेहिश्तें हैं, 
जिनके नीचे नहरें जारी होंगी. अल्लाह इन से ख़ुश होगा, ये अल्लाह से ख़ुश होंगे, 
ये उस शख़्स के लिए है जो हमेशा अपने रब से डरता है."
सूरह  बय्येनह  आयत (1 -8 )

नमाज़ियो!
सूरह में मुहम्मद क्या कहना चाहते हैं ? 
उनकी फ़ितरत को समझते हुए मफ़हूम अगर समझ भी लो तो सवाल उठता है कि बात कौन सी अहमयत रखती है? 
क्या ये बातें तुम्हारे इबादत के क़ाबिल हैं ?
क्या रूस, स्वेडन, नारवे, कैनाडा, यहाँ तक की कश्मीरियों के लिए घरों के नीचे बहती अज़ाब नहरें पसंद होंगी? 
आज तो घरों के नीचे बहने वाली गटरें होती हैं. 
मुहम्मद अरबी रेगिस्तानी थे जो गर्मी और प्यास से बेहाल हुवा करते थे, 
लिहाज़ा ऐसी भीगी हुई बहिश्त उनका तसव्वुर हुवा करता था.
ये क़ुरआन अगर किसी ख़ुदा का कलाम होता 
या किसी होशमंद इंसान का कलाम ही होता 
तो वह कभी ऐसी नाक़बत अनदेशी की बातें न करता.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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