Monday 21 May 2018

Soorah Hujr 15 mulammal

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हुज्र १५ 

((मुकम्मल)
)


चलो मक्खियों की तरह भिनभिना कर मुहम्मद की तुकबंदी की तिलावत की जाय और आने वाली नस्लों का आक़बत ख़राब किया जाय .

''अलरा -ये आयतें हैं एक किताब और कुरआन वाज़ेह की.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (१)

अलरा यह बेमानी लफ्ज़ मुहम्मद का छू मंतर है इसके कोई माने नहीं. 
मुहम्मद बार बार अपनी किताब को वाज़ेह कहते हैं जिसका मतलब होता है स्पष्ट अथवा असंदिग्ध, जब कि क़ुरआन पूरी तरह से संदिग्ध और मुज़ब्ज़ब किताब है.
ख़ुद आले इमरान में आयत ६ में अपनी आयातों को अल्लाह मुशतबह-उल-मुराद(संदिग्ध) बतलाता है. इसी को हम क़ुरआनी तज़ाद (विरोधाभास) कहते है. 
इसी के चलते सदियों से विरोधा भाषी फ़तवे ओलिमा नाज़िल किया करते हैं.


''काफ़िर लोग बार बार तमन्ना करेंगे क्या खूब होता अगर वह लोग मुसलमान होते. आप उनको रहने दीजिए कि वह खा लें और चैन उड़ा लें और ख़याली मंसूबा उन्हें ग़फलत में डाले रखें, उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (२-३)

काफ़िर लोग हमेशा ख़ुश हाल रहे हैं और मुसलमान बद हाल. 
इस्लामी तालीम मुसलमानों को कभी ख़ुश हाल होने ही न देगी, 
इनकी ख़ुश हाली तो इनका फरेबी आक़बत है जो उस दुन्या में धरा है. 
सच पूछिए तो अज़ाब ए मुहम्मदी मुसलमानों का नसीब बन चुका है. 
चौदह सौ साल पहले अहमक़ अल्लाह ने कहा
''उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''
उसका अभी, अभी तक नहीं आया ?


''और हमने जितनी बस्तियां हलाक की हैं, इन सब के लिए एक मुअययन नविश्ता है. कोई उम्मत न अपनी मीयाद मुक़रररा से न पहले हुई न और न पीछे रही.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(४-५)

अल्लाह ख़ुद एतराफ़ कर रहा है कि वह हलाकू है. 
फिर ऐसे अल्लाह पर सुब्ह ओ शाम लअनत भेजिए,
 किसी ऐसे अल्लाह को तलाशिए जो बाप की तरह मुरब्बी और दयालु हो, 
ना कि बस्त्तियाँ तबाह करने वाला. 
उसके सही बन्दे ओसामा बिन लादेन और बग़दादी की तरह ही ज़ालिम होते हैं जो तुम को नाबीना करके तबाह कर सकते हैं.


''और कहा वह शख़्स  जिस पर क़ुरआन नाज़िल किया गया, तहक़ीक़ तुम मजनूँ हो और अगर तुम सच्चे हो तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यूँ नहीं लाते? हम फ़रिश्तों को सिर्फ़ फ़ैसले के लिए ही नाज़िल किया करते हैं और इस वक़्त उनको मोहलत भी न दी जाती.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(६-८)

हदीसों में कई जगह है कि फ़रिश्ते ज़मीन पर आते हैं. 
पहली बार मुहम्मद को पटख कर फ़रिश्ते ने ही पढ़ाया था
''इकरा बिस्म रब्बे कल्लज़ी'' 
फिर ''शक्कुल सदर'' भी फ़रिश्ते ने किया, 
मुहम्मद ने आयशा से कहा कि जिब्रील अलैहिस्सलाम आए हैं, 
तुम को सलाम कर रहे हैं. 
जंगे बदर में तो हजारों फ़रिश्ते मैदान में मुसलामानों के शाने बशाने लड़ रहे थे, 
कई (झूठे) सहाबियों ने इसकी गवाही भी दी. 
अब लोगों के तकाज़े पर मंतिक गढ़ रहे हो कि रोज़े हश्र वह नाज़िल होंगे तो कभी कहते हो कि उनके आने पर भूचाल ही आ जाएगा.



''हम ने क़ुरआन नाज़िल किया, हम इसकी मुहाफ़िज़ हैं. और हम ने आप के क़ब्ल भी अगले लोगों के गिरोहों में भेजा था और कोई उनके पास ऐसा नहीं आया जिसके साथ उन्हों ने मज़ाक न किया हो. इसी तरह ये हम उन मुज्रिमीन के दिलों में डाल देते हैं. 

ये लोग इस पर ईमान नहीं लाते और ये दस्तूर से होता आया है. अगर उनके लिए आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें फिर ये दिन के वक़्त इस में चढ़ जाएँ, कह देंगे कि हमारी नज़र बंदी कर दी गई है, बल्कि हम लोगों पर तो एकदम जादू कर रखा है.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (९-१५)

अल्लाह कहता है कि वह ख़ुद लोगों के दिलों में शर डाल देता है कि (स्वयंभू ) पैग़म्बरों का मज़ाक़ उड़ाया करें. 
मुहम्मद इस बात को इस लिए अल्लाह से कहला रहे हैं कि बग़ैर उसके हुक्म के कुछ नहीं होता. 
यह उनका पहला कथन है. 
अब लोगों का मुजरिम भी अल्लाह को बना रहा है, 
और जुर्म ख़ुद कर रहा है ? 
भला क्यों? 
अल्लाह के पास कोई ईमान और इन्साफ़ का तराज़ू है? 
कहता है कि ऐसा उसका दस्तूर है? 
जबरा मारे रोवै न देय. 
ऐसे अल्लाह पर सौ बार लअनत. 
मुहम्मद आसमान में दरवाज़ा खोल रहे हैं गोया पानी में छेद कर रहे हैं.
मुसलमानों! 
दर अस्ल तुम्हारी नज़र बंदी कर दी गई है आँखें खोलो, वर्ना - - 
तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दास्तानों में.



''बेशक हमने आसमान में बड़े बड़े सितारे पैदा किए और देखने वालों के लिए इसको आरास्ता किया और इसको शैतान मरदूद से महफूज़ फ़रमाया, हाँ! कोई बात चोरी छुपे अगर सुन भागे तो इसके पीछे एक रौशन शोला हो लेता है.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(१६-१८)

रात को तारे टूटते हैं, ये उसका साजिशी मुशाहिदा है, 
उम्मी मुहम्मद ने शगूफ़ा तराशा है कि अल्लाह जो आसमान पर रहता है, वहां से ख़ारिज और मातूब किया गया शैतान उसके राजों के ताक में लगा रहता है कि कोई राज़ ए खुदा वंदी हाथ लगे तो मैं उस से बन्दों को भड़का सकूँ, जिसकी निगरानी पर फ़रिश्ते तैनात रहते हैं, 
शैतान को देखते ही रौशन शोले की मिसाईल दाग़ देते हैं. जो उसे दूर तक खदेड़ आतीहै.
मुसलमानों कब तक तुम्हारे अन्दर बलूग़त आएगी? 

कब मोमिन के ईमान पर ईमान लओगे?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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