Monday 28 May 2018

soorah nahl Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें है
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सूरह नह्ल 16
(क़िस्त- 4)


सूरतें क्या ख़ाक में होंगी ?

मुहम्मद ने क़ुरान में क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है, न ही कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता है. बे शुमार बार कहा होगा 
''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' 
यानी आसमानों को (अनेक कहा है) और ज़मीन (को केवल एक कहा है ). 
जब कि आसमान, कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, 
बे शुमार हैं. 
वह  बतलाते हैं पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न पाए. 
परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है 
और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है. 
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. 
कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है. 
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक़्ल ही न देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? 
मुल्लाओं की दलीलें कोई नहीं रोक सकता, सिवाए मज़बूत जूतों के.
मुहम्मद के अन्दर मुक़क्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए. 
ज़मीन कब वजूद में आई? कैसे इरतेक़ाई सूरतें इसको आज की शक़्ल में लाईं,  इन को इससे कोई लेना देना नहीं, 
बस अल्लाह ने इतना कहा ''कुन'', यानी होजा और ''फ़याकून'' हो गई.
बक़ौल 'मुनकिर' - - -
तहक़ीक़, ग़ौर व फ़िक्र तबीअत पे बोझ थे,
अंदाज़ से जो ज़ेहन में आया उठा लिया.
चुनना था इनको इल्म व अक़ीदत में एक को,
आसान थीं अक़ीदतें सर में जमा लिया.
देखे जहाँ में जिस क़दर क़ुदरत के नाक व-नक्श,
 इक बुत वहीँ पे रख दिया, धूनी रमा  लिया.

जब तक मुसलमान इस क़बीलाई आसान पसंदी को ढोता रहेगा,
वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. 
जब तक मुसलमान, मुसलमान रहेगा उसे यह क़बीलाई आसान पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो क़ुरआन उसको बतलाता है. 

मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.
 देखिए कि ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है.
ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे-तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजज़ा का परीशां होना.
कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान हैं. 
अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद क़ुरानी हिमाक़त का वजूद ही नहोता - - -
सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या ख़ाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं.

देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं . . .

''बाख़ुदा आप से पहले जो उम्मातें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?) सो उनको भी शैतान  ने उनके आमाल मुस्तहसिन करके दिखलाए , पस वह आज उन का रफ़ीक़ था और उनके वास्ते दर्द नाक सज़ा है.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६३)

मुहम्मद का एलान कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर आदतन उसके मुँह से भी बंदों की तरह बाख़ुदा कहलाते है ? 

''जो उम्मतें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?)'' 
क्या भेजा था? 
 ''गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया'' 
मुतराज्जिम मुहम्मद का मददगार बन कर ब्रेकेट में (रसूलों को) लिख देता है. यह क़ुरआन का ख़ासा है. 

कोई कुछ दिन किसी के काम आए तो बड़ी बात है फिर चाहे वह शैतान ही क्यूँ न हो बनिस्बत झूठे और जालसाज़ रसूलों के. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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