Wednesday 2 May 2018

Soorah raad 13- Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह रअद  - 13 (मेघ नाथ) 
(क़िस्त -1) 

मोमिन का ईमान

मोमिन और ईमान, लफ़्ज़ों और इनके मअनों को उठा कर इस्लाम ने इनकी मिटटी पिलीद कर दी है. यूँ कहा जाए तो ग़लत न होगा कि इस्लाम ने मोमिन के साथ अक़दे (निकाह) बिल जब्र कर लिया है और अपनी जाने जिगर बतला रहा है, जब कि ईमान से इस्लाम कोसों दूर है, दोनों का कोई आपस में तअल्लुक़ नहीं है, बल्कि बैर है. मोमिन की सच्चाई नीचे दर्ज है - -

१- फ़ितरी (प्रकृतिक) सच ही ईमान है. गैर फ़ितरी बातें बे ईमानी हैं-- 
जैसे हनुमान का पवन सुत या मुहम्मद की सवारी बुर्राक़ का हवा में उड़ना.
२- जो मुम्किनात में से है वह ईमान है. 
''शक़्क़ुल क़मर '' 
मुहम्मद ने उँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, उनका सफ़ेद झूट है.
३-जो स्वयं सिद्ध हो वह ईमान है. जैसे त्रिभुज के तीन नोकदार कोनो का योग एक सीधी रेखा. या इंद्र धनुष के सात रंगों का रंग बेरंग यानी सफ़ेद.
४- जैसे फूल की अनदेखी शक्ल खुशबू, बदबू का अनदेखा रूप दुर्गन्ध.
५- जैसे जान लेवा जिन्स ए मुख़ालिफ़ में इश्क़ की लज्ज़त.
६- जैसे जान छिड़कने पर आमादा ख़ून ए मादरी व ख़ूने पिदरी.
७- जैसे सच और झूट का अंजाम.
ऐसे बेशुमार इंसानी अमल और जज़्बे हैं जो उसके लिए ईमान का दर्जा रखते हैं. मसलन - - - क़र्ज़ चुकाना, सुलूक का बदला, अहसान न भूलना, अमानत में ख़यानत न करना, वगैरह वगैरह. 
 
मुस्लिम का इस्लाम 

१- कोई भी आदमी 
(चोर, डाकू, ख़ूनी, दग़ाबाज़ मुहम्मद का साथी मुग़ीरा* से लेकर गाँधी कपूत हरी गाँधी उर्फ़ अब्दुल्लाह तक) 
नहा धो कर कलमन (कलिमा पढ़ के) मुस्लिम हो सकता है.
२- कलिमा के बोल हैं ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' 
जिसके मानी हैं अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है और मुहम्मद उसके दूत हैं.
सवाल उठता है हज़ारों सालों से इस सभ्य समाज में अल्लाह और ईशवरों की कल्पनाएँ उभरी हैं मगर आज तक कोई अल्लाह किसी के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा. 
जब अल्लाह साबित नहीं हो पाया तो उसके दूत क्या हैसियत रखते हैं? 
सिवाय इसके कि सब के सब ढोंगी हैं.
३- कलिमा पढ़ लेने के बाद अपनी बुद्धि मुहम्मद के हवाले करो, 
जो कहते हैं कि मैं ने पल भर में सातों आसमानों की सैर की और अल्लाह से गुफ़तुगू करके ज़मीन पर वापस आया कि दरवाज़े की कुण्डी तक हिल रही थी.
४- मुस्लिम का इस्लाम कहता है यह दुनिया कोई मानी नहीं रखती, 
असली लाफ़ानी ज़िन्दगी तो ऊपर है, 
यहाँ तो इन्सान ट्रायल पर इबादत करने के लिए आया है. 
मुसलमानों का यही अक़ीदा क़ौम के लिए पिछड़े पन का सबब है 
और हमेशा बना रहेगा.
५- मुसलमान कभी लेन देन में सच्चा और ईमान दार हो नहीं सकता क्यूंकि उसका ईमान तो कुछ और ही है और वह है ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' इसी लिए वह हर वादे में हमेशा वह 
'' इंशाअल्लाह'' लगाता है. मुआमला करते वक़्त उसके दिल में उसके ईमान की खोट होती है. 
बे ईमान क़ौमें दुन्या में कभी न तरक्क़ी कर सकती हैं और न सुर्ख रू हो सकती हैं।
 
*मुग़ीरा --- 
मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुग़ीरा इब्ने शोअबा) एक क़ाफ़िले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर ग़द्दारी और दग़ा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस क़ाफ़िले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाक़ेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुस्लमान हो गए थे. (बुखारी-११४४)
मुसलमानों ने उमर द ग्रेट कहे जाने वाले ख़लीफ़ा के हुक्म से जब ईरान पर लुक़मान इब्न मुक़रन की क़यादत में हमला किया तो ईरानी कमान्डर ने बे वज्ह हमले का सबब पूछा था तो इसी मुग़ीरा ने क्या कहा ग़ौर फ़रमाइए - - -
''हम लोग अरब के रहने वाले हैं. हम लोग निहायत तंग दस्ती और मुसीबत में थे. भूक की वजेह से चमड़े और खजूर की गुठलियाँ चूस चूस कर बसर औक़ात करते थे. दरख़्तों  और पत्थरों की पूजा किया करते थे. ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा. इसी ने हम लोगों को तुमसे लड़ने का हुक्म दिया है, उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत न करने लगो या हमें जज़िया देना न क़ुबूल करो. इसी ने हमें परवर दिगार के तरफ़ से हुक्म दिया है कि जो जेहाद में क़त्ल हो जाएगा वह जन्नत में जाएगा और जो हम में ज़िन्दा रह जाएगा वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा.
(बुखारी १२८९)
 
हम मुहम्मद की अन्दर की शक्ल व सूरत उनकी बुनयादी किताबों कुरआन और हदीस में अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं. मेरी आँखों में धूल झोंक कर उन नुतफ़े हरामी ओलिमा की बकवास पढ़ने की राय दी जा रही है जिसको पढ़ कर उबकाई आती है कि झूट और इस बला का. 
मुझे तरस आती है और तअज्जुब होता है कि यह अक़्ल से पैदल पाठक उनकी बातों को सर पर लाद कैसे लेते हैं ?

''अल्लरा" 
ये आयतें हैं किताब की और जो कुछ आपके रब की तरफ़ से आप पर नाज़िल किया जाता है, बिलकुल सच है, और लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते. अल्लाह ऐसा है कि आसमानों को बग़ैर ख़म्बों के ऊँचा खड़ा कर दिया चुनाँच तुम उनको देख रहे हो, फिर अर्श पर क़ायम हुवा और सूरज और चाँद को काम में लगाया हर एक, एक वक़्त मुअय्यन पर चलता रहता है. वही अल्लाह हर काम की तदबीर करता है और दलायल को साफ़ साफ़ बयान करता है.ताकि तुम अपने रब के पास जाने का यक़ीन करलो.''
सूरह रअद १३ पारा १३ आयत (१-२)

सबसे पहले क़ुरआन में नाज़िल का अर्थ जानें, 
नाज़िल होने का सही अर्थ है प्रकृति की ओर से प्रकोपित (न कि उपहारित) नाज़िला (बला) होना, यानी क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से एक बला है, 
एक नज़ला है. 
उम्मी (जाहिल) पयम्बर ने अपने दीवान की व्याख्या में ही ग़लती कर दी. 
इसी नाज़िल, नुज़ूल और नाज़िला के बुन्याद पर इस्लाम को भी खड़ा किया, ताकि वह कोई भेंट स्वरूप नहीं, बल्कि क़ह्हार का क़हर है, 
हर वक़्त उसकी याद में मुब्तिला रहो. इसका फ़ायदा और नुक़सान ख़ुद मुस्लमान ही उठा रहा है. अवाम डरपोक हो गई है और ख़वास (आलिम व् मुल्ला और धूर्त-जन) उनके डर का फ़ायदा उठा कर उनको पीछे किए हुए हैं. इसकी बुन्याद डाली है बद नियती के साथ दुश्मने इंसानियत मुहम्मद ने. गवाही में मुग़ीरा का वाक़ेआ पेश कर चुका हूँ.
अल्लाह को ज़रुरत पेश आई यक़ीन दिलाने की कहता है 
''बिलकुल सच है'' 
यह तो इंसानी कमज़ोरी है, इस लिए कि उसको अपनी बात का यक़ीन दिलाना पड़े.
''लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते.''
उम्मी आसमान को छत तसव्वुर करते हैं जब कि इनसे हज़ार साल पहले ईसा पूर्व सुक़रात और अरस्तू के ज़माने में सौर्य मंडल का परिचय इन्सान पा चुका था और यह अपने अल्लाह को ऐसा घामड़ साबित कर रहे हैं कि उसको अभी तक इसका इल्म नहीं . अल्लाह बग़ैर सीढ़ी के उस पर चढ़ कर क़याम पज़ीर हो जाता है और फिर मुंतज़िर खड़े सूरज और चाँद को हुक्म देता है कि काम पर लग जाओ. इन बातों को उम्मी दलायल का साफ़ साफ़ बयान बतलाते हैं और मुसलमान अपने रब के पास जाने का यक़ीन कर लेता है ? इस सदी में भी मुसलमानों के चेहरों पर दीदे और खोपड़ी में भेजा नहीं तो ज़रूर जाएँगे असली जहन्नम में.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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