Wednesday 23 May 2018

Soorah nahal 16 Q 2


मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 2)


''और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़्ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख़्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की ख़बर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (१४-२१) 

बग़ैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह क़ुरआन की उरयाँ इबारत है. 
मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. 
कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' 
अगर ओलिमा उनकी रोज़े-अव्वल से मदद गार न होते तो क़ुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती 
''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' 
कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदः सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने ''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे.'' 
मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं 
''ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' 
मख़्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, 
फिर उनको मौत से बे ख़बर बतलाते हैं. 
''वह ख़ुद ही मख़्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, ज़िन्दा नहीं और इस की ख़बर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक़्ल  उनके अक़ीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी, 
जीने की भीख माँग रही है मगर अंधी अक़ीदत अंधे क़ानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है. 
मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना क़ुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, 
तो बग़ैर लिहाज़ के कह देते  
क्या रक्खा है इन बातों में ? 
सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं
''ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत कराते हैं. एक ख़ाक़ा भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है 
और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाख़िल करता है. 
काफिरों मुशरिकों के लिए . . . 

''सो जहन्नम के दवाज़े में दाख़िल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, 
ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' 
और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .
अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (२२-३४)
इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का क़ौल दोहराते हुए पूछते हैं ''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की न हम इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब न देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (35-३७)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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