Saturday 5 May 2018

Soorah raad 13- Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह रअद  - 13 (मेघ नाथ) 
(क़िस्त -2) 

आज भारत भूमि का सब से बड़ा संकट है नक्सलाइट्स, 
जिसकी कामयाबी शायद भारत का सौभाग्य हो और नाकामी इसका दुर्भाग्य. 
दूसरा बड़ा संकट है इस्लामी आतंकवाद जो सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं पूरी दुन्या के लिए अज़ाब बना हुवा है. दुन्या इस से कैसे निपटती है दुन्या जाने या बड़ी ताक़तें अमरीका रूस वग़ैरा. 
भारत की सियासी फ़िज़ा इसे ज़रूर पाल पोस रही है. 
क़ुरआन में क्या है अब किसी से छिपा हुवा नहीं है, सब जानते हैं क़ुरआन जेहाद सिखलाता है, काफ़िरों से नफ़रत करना सिखलाता है. 
भारत में हर हिन्दू प्योर काफ़िर है. मदरसों में क़ुरआनी के मुताबिक़ इनको ख़त्म ही सवाब है, पढ़ाया जाता है, मदरसे हर पार्टी के नाक के नीचे चलते हैं, वह भी सरकारी मदद से. 
इनमें से कुछ आत्म घाती बन जाते हैं, मरते ही सवाब जारी हो जाएगा, 
हूरों भरी जन्नत में पहुँच जाएँगे जहाँ अय्याशी के साथ साथ शराबन तहूरा भी मयस्सर होगी, ऐसा उनका विश्वास होता है.
मदरसों पर, क़ुरआन पर,साथ साथ मनु स्मृरिति पर और अंध विश्वासों की पोथियों पर पाबन्दी नहीं लगाई जा सकती ? 
ऐसे में क्या कोई भारत भाग्य विधाता पैदा होगा?
B J P जैसी कट्टर साम्प्रदायिक पार्टियाँ चाहती है कि क़ुरआन की सिर्फ़ जेहादी आयतों को इस से निकाल कर इसे क़ायम रहने दिया जाए. 
वजेह? 
ताकि मुसलमान इसकी जेहालत में मुब्तिला रह कर हिदुओं के लिए सस्ती मज़दूरी करते रहें और इनकी कंज्यूमर मार्केट भी बनी रहे. 
सवर्णों की पार्टी कांग्रेस चाहती है कि क़ुरआन की नाक़िस तालीम क़ायम रहे वर्ना मनुवाद सरीखे पंडितो और बनियों द्वारा दोहित हो रहे भारत उनके क़ब्ज़े से निकल जाएगा जोकि उनके हक़ में न होगा. 
बहुजन जैसी दलित उद्धार के नेता मौक़ा मिलते ही ब्रह्मण बन कर दलितों पर राज करने लग जाते हैं. 
इन्हीं धोका धडी में लिपटी ८०%भारत की आबादी ५% नाजायज़ अक्सरियत और .५% नाजायज़ अक़ल्लियत के हाथों का खिलौना बनी हुई है. 
बिल गेट्स दुन्या के अमीरों में पहले नंबर पर रहे, अपनी ५३ बिलियन डालर की दौलत में से ३८.७ बिलियन डालर
''बिल & मिलिंडा गेट्स फ़ौंडेशन'' 
नाम का ट्रस्ट बना के इसको दान देकर ग़रीब किसानों और मजदूरों की सेहत और सुधार काम में लगा दिया है. 
हमारे देश में अम्बानी बन्धु जो देश की मालिक बने बैठे हैं, पेट्रोल, गैस से लेकर किसानों तक के कामों को उनके हाथों से छीन कर अपने हाथों में ले लिया है, 
बद्री नाथ की तीर्थ यात्रा से अपने पाप धो रहे हैं. 
तिरुपति मंदिर से अजमेर दरगाह तक घर्म के धंघे बाज़ इन्ही ५.५% बे ईमानों के शिकार हैं. 
देखिए भारत जैसे क़ुदरत द्वरा माला मॉल देश का सितारा कब तक गर्दिश में रहता है.

क़ुरआनी जेहालत कहती है - - - 
''वह ऐसा है कि उसने ज़मीन को फैलाया और उसमे पहाड़ और नहरें पैदा कीं और उसमे हर क़िस्म के फलों से दो दो किस्में पैदा किए. रात से दिन को छिपा देता है. इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है. और ज़मीन में पास पास मुख़्तलिफ़ टुकड़े हैं और अंगूरों के बाग़ है और खेतियाँ हैं और खजूरें हैं जिनमें तो बअजे ऐसे है कि एक तना से जाकर ऊपर दो तने हो जाते हैं और बअज़े में दो तने नहीं होते, सब को एक ही तरह का पानी दिया जाता है और हम एक को दूसरे फलों पर फ़ौक़ियत देते हैं इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''
सूरह रअद १३ पारा १३ आयत (३-४)

चार सौ साल पहले ईसाई साइंटिस्ट गैलेलियो ने बाइबिल को कंडम करके ज़मीन को फैलाई हुई रोटी जैसी चिपटी नहीं बल्कि गोल कहा था, 
तो उसे ईसाई कठ मुल्ला निज़ाम ने उसे फाँसी की सज़ा सुना दिया था, 
ख़ैर वह उनकी बात, अपनी जान बचाने के लिए मान गया, 
मगर आज सारे ईसाई गैलेलियो की बात को मान गए हैं. 
तौरेत के नक़्ल में गढ़े क़ुरआन के पैरोकार ज़िद में अड़े हुए हैं कि नहीं ज़मीन वैसे ही है जैसी कुरआन कहता है, हालांकि वह रोज़ उसकी तस्वीर कैमरों में देखते हैं. 

हे कुरआन के रचैता! 
पहाड़ तो कुदरती हैं मगर ज़मीन पर नहरें तो इंसानों ने बनाई! 
आप को इस बात की भी ख़बर न मिली होगी. 
अहमक अल्लाह! 
कौन सा फल है जिसकी सिर्फ़ दो क़िस्में होती हैं? 
(दरअस्ल मुहम्मद को भाषा ज्ञान तो था नहीं शायद दो दो से उनका अभिप्राय बहु वचन से हो)

''रात से दिन को छिपा देता है'' 
ये जुमला भी कुरआन में बार बार आता है. खुदाए आलिमुल ग़ैब को क्या इस बात का पता न था कि ज़मीन पर रात और दिन का निज़ाम क्यूँ है? 
दरख़्तों में तनों की बात फिर करता है, 
एक या दो दो - - -
यहाँ पर भी दो दो से अभिप्राय बहु वचन से हैं. 
इसी तरह तर्जुमा निगारों ने पूरे क़ुरआन में 

'' अल्लाह के कहने का मतलब ये - - - है'' 
लिख कर मुहम्मद की मदद की है. लाल बुझक्कड़ के इन फ़लसफ़ों पर बार बार मुहम्मद इसरार करते हैं कि 
''इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''

''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये क़ौल तअज्जुब के लायक़ है कि जब हम खाक़ हो गए, क्या हम फिर अज़ सरे नव पैदा होंगे. ये वह लोग हैं कि जिन्हों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया और ऐसे लोगों की गर्दनों में तौक़ डाले जाएँगे और ऐसे लोग दोज़खी हैं. वह इस में हमेशा रहेंगे.''
सूरह रअद १३ पारा १३ आयत (५)

यहूदियत से उधार लिया गया ये अन्ध विश्वास मुहम्मद ने मुसलामानों के दिमाग़ में भर दिया है कि रोज़े-महशर वह उठाया जाएगा, फिर उसका हिसाब होगा और आमालों की बुन्याद पर उसको जन्नत या दोज़ख़ की नई ज़िन्दगी मिलेगी. 
आमाले-नेक क्या हैं ? 
नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और अल्लाह एक है का अक़ीदा जो कि दर अस्ल नेक अमल हैं ही नहीं, बल्कि ये ऐसी बे अमली है जिससे इस दुन्या को कोई फ़ायदा पहुँचता ही नहीं, आलावा नुक़सान के.
हक़ तो ये है कि इस ज़मीन की हर शय की तरह इंसान भी एक दिन हमेशा के लिए खाक़ नशीन हो जाता है बाक़ी बचती है उस की नस्लें जिन के लिए वह बेदारी, खुश हाली का आने वाला कल होता है. वह जन्नत नुमा इस धरती को अपनी नस्लों के वास्ते छोड़ कर रुख़सत हो जाता है या तालिबानियों के वास्ते.

मुहम्मद का भाषाई व्याकरण देखिए - -
''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये क़ौल तअज्जुब के लायक़ है'' 
दोज़ख तो तड़प तड़प कर जलने की आग की भट्टी है, जिसमे कुछ पल में इंसान खाक़ हो जाता है.
आप फ़रमाते हैं -
''वह इस में हमेशा रहेंगे.''



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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