Monday 14 May 2018

Soorah Ibraheem 14 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४

(क़िस्त- 1)


एक थे बाबा इब्राहीम. यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों (और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) मुश्तरका मूरिसे आला (मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम. (और शायद ब्रह्म भी)
बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, हम उनका बाइबिल प्रचलित पहला नाम अब्राहम लिखते हैं कि वह पथर कटे क़बीले के ग़रीब बाप तेराह के बेटे थे, बाप तेराह बार बेटे अब्राहम से कहता कि 
बेटा! हिजरत करो, (विदेश जाना)
हिजरत में बरकत है, 
हो सकता है तुम को एक दिन दूध और शहद वाला देश रहने को मिले. 
आख़िर एक दिन बाप तेराह की बात लग ही गई, 
अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, 
जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) से बहर निकला.
ख़ाके-ग़रीबुल वतनी छानते हुए मिस्र के बादशाह फ़िरअना के दरबार वह तीनो पहुँचे, 
माहौल का जायज़ा लिया. 
बादशाह ने दरबार आए मुसाफ़िरों को तलब किया, 
तीनों उसकी ख़िदमत में पेश हुए, 
अब्राहम ने सारा को अपनी बहन बतला कर ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, जबकि वह उसकी चचा ज़ाद बहन थी, 
सारा हसीन थी, बादशाह ने सारा को मन्ज़ूर ए नज़र बना कर अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया. 
उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया जिससे वह मालदार हो गए. 
सारा को कोई औलाद न थी, उसने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी ख़ादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, 
मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ.
इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी कि वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बियाबान में छोड़ आया.
अब्राहम को उसके इलोही ने ख़्वाब में दिखलाया कि इस्हाक़ की क़ुरबानी, वह इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया और आँख पर पट्टी बाँध कर हलाल कर डाला मगर जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह मेंढा होता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है. (तौरात) 

मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को दीने-इब्राहीमी कहते हैं.
सब से पहले, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीन जुर्म ख़ास - - - 
पहला जुर्म और यह झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहन बतलाया और उसको बादशाह की ख़ातिर हरम के हवाले किया.
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था मेंढे को ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. 
खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. 
सोचिए कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का मेंढा बन जाना ग़ैर फ़ितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अक़ीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे. 
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - 
अल्ला हुम्मा सल्ले . . . 
अर्थात 
''ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर.बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है."
मुसलमानों ! 
अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि उनहोंने किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भी ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है 
क्या तुम उनको फ़रामोश करके मुहम्मद की गुम राहियों में पड़ गए हो ? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी क़ुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? 
शर्म से डूब मरो. 

आइए नई फ़िक्र पैदा करने के लिए पढ़ते हैं झूट की बुनियादें . . .

''और जब इब्राहीम ने कहा ऐ मेरे रब! इस शहर (मक्का) को अम्न वाला शहर बना दीजिए और मेरे फ़रज़न्दों को बुतों की हिफ़ाज़त से बचाए रखियो. ऐ मेरे परवर दिगार बुतों ने बहुतेरे आदमियों को गुमराह कर रखा है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (३)

उस वक़्त जब इब्राहीम से यह दुआ मंगवा रहे हैं, उम्मी मुहम्मद अपने पुरखे इब्राहीम से, न काबा था, न शहर मक्का था, न इन नामों निशानों की कोई चिड़िया. 
ग़ैर इंसानी आबादी वाला यह ख़ित्ता मुसलसल रेगिस्तान था, बस ज़रा सा पानी का एक चश्मा हुवा करता था. मजबूरी में इस्माईल की माँ हाजरा यहाँ बस कर इसको आबाद किया था तब, मुसाफ़िर रुक कर यहाँ पानी लेते और उसकी कुछ मदद करते. दो बार इस्माईल के जवानी में इब्राहीम यहाँ आया भी मगर मुलाक़ात नहीं हुई कि वह बद हाल दोनों बार तलाशए मुआश में शिकार पर गया था. 
मुहम्मद यहाँ पर बुतों को ख़ुद बा असर पाते हैं जो इंसान को उनके या उनके अल्लाह के ख़िलाफ़ गुमराह करते रहते हैं. इसके बर अक्स पहले कह चुके हैं कि ये बे असर बुत किसी को कोई नफ़ा या नुक़सान नहीं पहुंचा सकते.

''हमने तमाम पैग़म्बरों को उन ही के क़ौम के जुबान में पैग़म्बर बना कर भेजा ताकि उन से बयान करें. फिर जिसको चाहे अल्लाह गुमराह करता है,जिसको चाहे हिदायत करता है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (३) (४)

ऐ मुहम्मदी अल्लाह! 
तूने तो यही सोचा था कि ज़ुबान के हिसाब अरबी क़ौम का पैग़म्बर अरबों के लिए भेजा है मगर मुहम्मद का जिहादी फ़ार्मूला उससे हासिल माले-ग़नीमत इतना कामयाब होगा कि यह आलमी बन जाएगा. अरब इसका फ़ायदा ईरान, अफ़गान, भारत, पूर्वी एशिया,अफ्रीका, योरोप में स्पेन और तुर्की से उठाएगा. मगर तूने यह भी नहीं सोचा कि यह निज़ाम कितना ख़ूनी होगा? 
वाक़ई तू शैतान ए अज़ीम है जिसको चाहे गुमराह करे, 
जैसे हमारे भोले भाले, मासूम दिल मुसलमान, 
तेरी चालों को समझ ही नहीं पाते.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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