Wednesday 16 May 2018

Soorah Ibraheem 14 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४
(क़िस्त- 2)

''और कुफ़्फ़ार ने रसूल से कहा कि हम तो अपनी सर ज़मीन से निकाल देंगे, या तुम हमारे मज़हब में फिर आओ, पस उन पर उन के रब ने वहिय नाज़िल की कि हम उन ज़ालिमों को ज़रूर हलाक़ कर देंगे और उनके बाद तुम को उस सर ज़मीन पर आबाद रखेंगे. ये हर उस शख़्स के लिए है जो मेरे रूबरू खड़े रहने से डरे और मेरी वईद से डरे. और कुफ़्फ़ार फ़ैसला चाहने लगे, जितने ज़िद्दी थे वह सब नामुराद हुए. इसके आगे दोज़ख़ है और इसको ऐसा पानी पीने को दिया जाएगा जो पीप होगा, जिसे घूँट घूँट पिएगा और कोई सूरत न होगी और हर तरफ़ उसके मौत की आमद होगी, वह किसी तरह से मरेगा नहीं और उसे सख़्त अज़ाब का सामना होगा.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (३) (१३-१७)

मुसलामानों!
देखो कि कितनी सख़्त और घिनावनी सज़ाएँ तुम्हारे अल्लाह ने मरने के बाद भी तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खी है, यहाँ तो दुन्या भर के अज़ाब थे ही. वहां फिर मौत भी नहीं है कि इन से नजात मिल सके. 
एक ही रास्ता है कि हिम्मत करके ऐसे अल्लाह को एक लात जम कर लगाओ कि फिर तुम्हारे आगे यह मुँह खोलने लायक़ भी न रहे.
यह ख़ुद तुम्हारा पिया हुवा 
''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का ज़हर है जो तुम्हारी ख़ूब सूरत ज़िन्दगी को खौ़फ़ में घुलाए हुए है.
सर ज़मीनों को ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का नाटक है जो अपने जादू से लोगों को पागल किए हुए है.
अब बस बहुत हो चुका. आप इक्कीसवीं सदी में पहुँच चुके हैं. 
आँखें खोलिए.
ये पाक क़ुरान नहीं, नापाक नजासत है जो आप सर रखे हुए हैं.

''जो लोग अपने परवर दिगार के साथ कुफ्र करते हैं उनकी हालत बएतबार अमल के ये है कि जैसे कुछ राख हो जिस को तेज़ आँधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए. इन लोगों ने अमल किए थे, इस का कोई हिस्सा इनको हासिल नहीं होगा. ये भी बड़ी दूर दराज़ की गुमराही है.''

अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह ख़ुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं ख़ुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है.
दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ?
ये कोई अरबी नुक़ता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, 
इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं.
कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.

''और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं ख़ुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (22)

मुहम्मद जब कलाम ए इलाही बड़बड़ाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है  
''वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.''
सूरह आले इमरान आयत(७) यहाँ भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है, 
अल्लाह के रसूल , शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.

''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . .
कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (२४-२५)

मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं.
ख़ैर.
मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे-हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. 
देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.

''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक़ (इसहाक) अता फ़रमाए. ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो, मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (४०)

इर्तेक़ाई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ़्र.

''ऐ मेरे रब मेरी मग़फ़िरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत  (४१)

इसी क़ुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग़फ़िरत की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख़्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. 
यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? 
कोई आलिम इन बातों का जवाब नहीं देता.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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