Monday 28 May 2018

Soorah nahl 16 Q 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 5)
मफ्रूज़ा अल्लाह की फ़र्ज़ी रसूल से ख़िताब - - - 



''और हम ने आप पर यह किताब सिर्फ़ इस लिए नाज़िल की है कि जिन उमूर पर लोग इख़्तलाफ़ कर रहे हैं, आप लोगों पर इसे ज़ाहिर फ़रमा दें और ईमान वालों को हिदायत और रहमत की ग़रज़ से. और तुम्हारे लिए मवेशी भी ग़ौर दरकार हैं, इन के पेट में जो गोबर और ख़ून है, इस के दरमियान में से साफ़ और आसानी से उतरने वाला दूध हम तुम को पीने को देते हैं. और खजूर और अंगूरों के फलों से तुम लोग नशे की चीज़ और उम्दा खाने चीज़ें बनाते हो. बे शक इसमें समझने के लिए काफ़ी दलीलें हैं जो अक़्ल   रखते हैं.'' 
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६४-६७) 

तब्दीलियाँ क़ानूने-फ़ितरत है जो वक़्त के हिसाब से ख़ुद बख़ुद आती रहती हैं. मुहम्मद ने अपना दीन थोपने के लिए ''तबदीली बराए तबदीली'' की है जो कठ मुल्लाई पर आधारित थी. ख़ास कर औरतें इस में हाद्सती लुक़्मा हुईं. 
क़ब्ले-इस्लाम औरतों को यहाँ तक आज़ादी थी 
कि शादी के बाद भी वह समाज के लायक़ ओ फ़ायक़ फ़र्द से, 
अपने शौहर की रज़ामंदी के बाद, महीने से फ़ारिग होकर, नहा धो के, 
उसकी ''शर्म गाह'' की तलब कर सकती थीं 
और तब तक के लिए जब तक कि वह हामला न हो जाएँ .
 ये रस्म अरब में अलल एलान थी और क़ाबिले-सताइश थी, 
जैसा की भारत में नियोग की प्रथा हुवा करती थी. 
मुहम्मद ने अनमोल कल्चर का गला गोंट दिया, 
मुसलमानों को सिर्फ़ यही याद रहने दिया गया कि सललललाहो  अलैहेवसल्लम ने बेटियों को जिंदा दफ़नाने को रोका.
कठ मुल्ले ने गोबर, ख़ून और दूध का अपने मंतिक  बयानी से कैसा गुड़  गोबर  किया है.

''और आप के रब ने शहेद की मक्खी के जी में यह बात डाली कि तू पहाड़ में घर बनाए और दरख़्तों में और जो लोग इमारतें बनाते हैं इनमें, फिर हर क़िस्म के फलों को चूसती फिर, अपने रब के रास्तों पर चलती जो आसन है. उसके पेट में से पीने की एक चीज़ निकलती है, जिस की रंगतें मुख़्तलिफ़ होती हैं कि इन में लोगों के लिए शिफ़ा है. इस में इन लोगों के लिए बड़ी दलील है जो सोचते हैं.''    
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६८-६९) 



मुहम्मद का मुशाहिदा शाहेद की मक्खियों पर कि जिनको इतना भी पता नहीं कि मक्खियाँ फलों का नहीं फूलों का रस चूसती हैं. 
रब का कौन सा रास्ता है जिन पर हैवान मक्खियाँ चलती हैं?
या अल्लाह कहाँ मक्खियों के रास्तों पर हज़ारों मील योमिया मंडलाया करता है? मगर तफ़सीर निगार कोई न कोई मंतिक गढ़े होगा. 



''और अल्लाह तअला ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करता है और बअज़े तुम में वह हैं जो नाकारा उम्र तक पहंचाए जाते हैं कि एक चीज़ से बा ख़बर होकर फिर बे ख़बर हो जाता है . . . और अल्लाह तअला ने तुम में बअज़ों को बअज़ों पर रिज्क़ में फ़ज़ीलत दी है, वह अपने हिस्से का मॉल गुलामों को इस तरह कभी देने वाले नहीं कि वह सब इस पर बराबर हो जावें. क्या फिर भी ख़ुदाए तअला की नेमत का इंकार करते हो. और अल्लाह तअला ने तुम ही में से तुम्हारे लिए बीवियाँ बनाईं और बीवियों में से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम को अच्छी चीज़ें खाने को  दीं, क्या फिर भी बे बुन्याद चीजों पर ईमान रखेंगे . . . 
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत  (७०-७२) 

न मुहम्मद कोई बुन्याद क़ायम कर पा रहे हैं और न मुख़ालिफ़ को बे बुन्याद साबित कर पा रहे हैं. 
बुत परस्त भी बुतों को तवस्सुत मानते थे न कि अल्लाह की मुख़ालिफ़त करते . 
तवस्सुत का रुतबा छीन लिया बड़े तवस्सुत बन कर ख़ुद बन बैठे . 
मुजरिम बेजान बुत कहाँ ठहरे? 
मुजरिम तो गुनेह्गर मुहम्मद साबित हो रहे हैं जिन्हों ने आज तक करोरो इंसानी जिंदगियाँ वक़्त से पहले ख़त्म कर दीं. 
अफ़सोस कि आज भी करोरो जिंदगियां दाँव पर लगी हुई हैं.



 ''और अल्लाह तअला ने तुम को तुम्हारी माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ भी न जानते थे और इसने तुम को कान दिए और आँख और दिल ताकि तुम शुक्र करो. क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान के मैदान में तैर रहे हैं, इनको कोई नहीं थामता.बजुज़ अल्लाह के, इस में ईमान वालों के लिए कुछ दलीलें हैं. और अल्लाह तअला ने तुम्हारे लिए जानवरों के खाल के घर बनाए जिन को तुम अपने कूच के दिन हल्का फुल्का पाते हो और उनके उन,बाल और रोएँ से घर की चीज़ें बनाईं . . . और मख़लूक़ के साए . . . पहाड़ों की पनाहें . . . ठन्डे कुरते . . . और जंगी कुरते बनाए ताकि तुम फ़रमा बरदार रहो. फिर भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो आप का ज़िम्मा है साफ़ साफ़ पहुंचा देना.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (७८-८२) 



यह है क़ुरानी हक़ीक़त किसी पढ़े लिखे ग़ैर मुस्लिम के सामने दावते-इस्लाम के तौर पर ये आयतें पेश करके देखिए तो वह कुछ सवाल आप से ख़ुद करेगा . . .
१-अल्लाह ने कान दिए और आँख और दिल - - - सुनने,देखने और एहसास करने के लिए दिए हैं कि शुक्र अदा करने के लिए?
२- और अब हवाई जहाज़, रॉकेट और मिसाइलें आज कौन थामता है? 
ईमान वालों के पास अक़ले-सलीम है?
३-अब हम जानवरों की खाल नहीं बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहेनते हैं उन,बाल और रोएँ का ज़माना लद गया, हम पोलोथिन युग में जी रहे हैं, 
तुम भी छोड़ो, इस  बाल की खाल में जीना और मरना. 
जो कुछ है बस इसी दुन्या में और इसी जिंदगी में है.
४-हम बड़े बड़े टावर बना रहे हैं और मुसलमान अभी भी पहाड़ों में रहने की बातों को पढ़ रहा है? 
और पढ़ा रहा है?
५-बड़े बड़े साइंसदानों का शुक्र गुज़र होने के बजाय इन फटीचर सी बातों पर ईमान लाने की बातें कर रहे हो.  
६- तुम्हारे इस उम्मी रसूल पर जो बात भी सलीक़े से नहीं कर पाता था? 
तायफ़  के हाकिम ने इस से बात करने के बाद ठीक ही पूछा था 
''क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का पढ़ा लिखा शख्स नहीं मिला था 
जो तुम जैसे जाहिल को पैग़म्बर बना दिया.''



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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