Friday 25 May 2018

Soorah nahl Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 3)


''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा न करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (३८+४०)

यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद ख़ुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. 
मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशानों और आलीशानों के.
''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है. उसके बाद कहते हैं

''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगाते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफ़तरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५६)

मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वग़ैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं. 
एक अल्लाह ए वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है 
और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. 
मुसलमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं, 
मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.



''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५७)

मुहम्मद भटक कर ग़ालिबन ईसाई अक़ीदत पर आ गए हैं जो कि ख़ुदा के मासूम फ़रिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लड़कियाँ लगती हैं, 
वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने ख़ुदा के लिए चुना. 
और कहते है ख़ुद अपने  लिए चाहीती चीज़ यानी बेटा.
मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.



''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक़ रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको ख़बर दी गई है.  इसकी वजेह  से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५८-५९)

मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म न था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. 
मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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